NEWS NATIONAL
हरिद्वार / पत्रकारिता एक ऐसा स्तम्भ है जो मजबूत तो था ही साथ ही विश्वाशनिय भी था,लेकिन आज जो दशा पत्रकारिता कि हो चुकी हैं उस से समाज,सरकार प्रसाशन बहुत अच्छे से परिचित हो चुके हैं,आज हर गलियों व मुहल्लो से माफिया,अपराधी असामाजिक तत्व व अवैध कार्यों को अंजाम देने वाले लोग पत्रकारिता की आड़ लेकर ओर स्वयं को पत्रकार कहकर जगह जगह धौंस मार रहे हैं यें वही लोग हैं जिन्हे शायद भारत के प्रधानमंत्री ओर महामहिम राष्ट्रपति का नाम भी मालूम न हो,यह तो बहुत दूर कि बात रही अपने राज्य के मुख्यमंत्री का भी नाम शायद ही मालूम हो ,
पत्रकारिता जनता व समाज के बीच का वो हिस्सा हैं जिस पर लोग कभी विस्वाश किया करते थे,लेकिन आज वहीं जनता ओर समाज पत्रकारों के भेष मे घूम रहे इन बहरूपियों से भयभीत हो रहे हैं,क्योंकि आज क्षेत्र मे ऐसे बहुत से असामाजिक तत्व व माफिया हैं जो पत्रकारिता कि आढ़ लेकर अपने अवैध धंधो को अंजाम दे रहे हैं,ब्लैकमेलिंग कर रहे हैं, लेकिन जब यें कानून के शिकज़े मे फँसते हैं तो फिर यही बहरूपिये पत्रकार होने की दुहाई भी देते हैं,लेकिन एक ऐसा सवाल जो बहुत बड़ा हैं,की क्यों यें लोग सिर्फ पत्रकारिता की आढ़ ही लें रहे हैं,ज़ब इन्हे आड़ लेनी ही हैं तो यें स्वयं को मंत्री,नेता,पुलिस वाला,सीबीआई वाला,क्यों नही बताते,सिर्फ पत्रकारिता को ही क्यों यें लोग मोहरा बना रहे हैं?
जान लिजिये स्वयं को पत्रकार कहने वाले इन बहरूपियों की योग्यता ओर शिक्षा के बारे मे भी,
आज जीतने भी असामाजिक तत्व,माफिया व ब्लेकमेलर पत्रकारिता की शरण लेकर अपने अवैध धंधो को अंजाम दे रहे हैं अगर उनकी शिक्षा ओर योग्यता के बारे मे पूछ लिया जाए तो ये या तो बगले झांकने लगते हैं या वहाँ से खिसक लेते हैं,मजे की बात तो ये हैं की जिन्हे पत्रिकारिता की परिभाषा का भी ज्ञान नही, आज वे स्वयं के नाम के आगे चीफ एडिटर जैसे बड़े पद लिखकर समाज के सामने स्वयं को प्रदर्शित कर गुमराह कर रहे हैं इतना ही नही एक बार किसी शिक्षित व योग्य व्यक्ति से चीफ एडिटर लिखने से पहले उसकी स्पेलिंग तक पूछने मे अपनी शान मे कमी समंझ लेते हैं,भले ही चीफ के स्थान पर थीफ ही क्यों न लिखा जाए इन्हे कोई फर्क नही पड़ता,
जिले के किसी भी बड़े अधिकारी के पदभार सँभालते ही पहुँचते हैं हाजरी देने,
हैरानी की बात यें हैं की ज़ब भी जिले मे किसी बड़े अधिकारी का आगमन होता हैं या कोई अधिकारी स्थानांतरण होकर जिले का पदभार संभालता हैं तो सबसे पहले पत्रकारों के भेष मे आये यें माफिया अधिकारी संग फोटो खिंचवाने की लाइन मे खडे हो जाते हैं,ओर कुछ दिन उन्ही फोटो को अपने सोशल मिडिया एकाउंट की मुख्य डीपी पर अपडेट कर कर के अधिकारियों से अपने मधुर सम्बन्ध होने का दावा करते हैं,ये ऐसा क्यों करते हैं? तो समँझ लिजिये की उसके बाद इन बहरूपियों ओर माफियाओं का असली खेल शुरू होता हैं,ओर वो खेल हैं लोगों को डरा धमका कर उनसे अवैध वसूली करने का,जिस अधिकारी के संग फोटोग्राफी की हैं उसी से शिकायत करने का,यानि कुल मिलाकर पत्रकारिता की आढ़ मे अपने अवैध कार्यों को अंजाम देनें की उनकी यें प्रथम योजनाओं मे शामिल होता हैं,
रोशनाबाद पुलिस मुख्यालय मे पुलिस अधिकारियों की प्रेस मे पहुँच रहे कुछ संदिग्ध,
बता दें की ज़ब भी रोशनाबाद पुलिस मुख्यालय मे पुलिस अधिकारियों की प्रेस कॉन्फ्रेंस होती हैं तो कुछ समय से ऐसे कुछ लोग भी कॉन्फ्रेंस मे पत्रकार बनकर पहुँच रहे हैं जिन्हे अब से पहले किसी स्थानीय पत्रकार नें न तो किसी घटना स्थल पर केवरेज करते देखा हैं ओर न ही अब से पहले किसी प्रेस मे,फिर कहाँ से अचानक यें इतने अज्ञात लोग वरिष्ठ पत्रकारों के बीच प्रेस मे बैठकर अधिकारियों के समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं,क्यों इनकी कोई जांच नही? ,कैसे इन्हे प्रेस कॉन्फ्रेंस मे बैठने की अनुमंति मिल रही हैं, हैरानी की बात तो ये हैं की न तो इन लोगों की कहीं खबरें प्रकाशित होती हैं ओर न ही इनका पत्रकारिता से कोई संबंध होता हैं,जबकि बात बिलकुल स्पस्ट हैं,इन लोगों के कारण सही ओर वैध पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस मे काम करने मे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं,
एक न्यूज़ पोर्टल बनाओं ओर घुस जाओ वैध पत्रकारों संग अधिकारियों के बीच,चेहरा दिखाने,
धर्म नहरी हरिद्वार मे न जाने ऐसे कितने अवैध कार्य हैं जिन से समाज दूषित हो रहा हैं,ओर इस सच्चाई को दिखाने मे मिडिया की अहम भूमिका होती हैं,लेकिन आज मिडिया इतना असहाय हो चुका हैं की अपने ही मध्य पनप रहे उन बहरूपियों को दिखाने मे कन्नी काट रहा हैं जो उनके बीच पनप कर उन्ही को डिमक की तरह उनका अस्तित्व समाप्त कर रहे हैं, यह कहना गलत नही होगा की यह वर्तमान पत्रकारिता के अस्तित्व पर खतरा बनकर मंडरा रहा हैं, पत्रकारों के भेष मे बहरूपियों का ये वही बढ़ता जाल हैं जो अपने अवैध कार्यों को अंजाम देने के लिये व ब्लेकमेलिंग करने के लिये पत्रकारिता की शरण लें रहा हैं,हैरान करने वाली बात तो ये है की ऐसे भी बहुत से पत्रकार हैं जो महीने मे इन्ही से अखबार के लिये थोड़ा बहुत सहयोग रूपी खर्च लेकर या 500 से 2500 रूपये लेकर इन्हे प्रेस के कार्ड बेच रहे हैं,
अब मुख्य सवाल यें हैं की आखिर ऐसे असामाजिक तत्वों व माफियाओं पर लगाम कौन कैसेगा जो पत्रकारिता की आढ़ लेकर पत्रकारिता को बदनाम करने का काम कर रहे हैं,अपने अवैध कार्यों को अंजाम देने के लिये पत्रकारिता के क्षेत्र को ही क्यों चुन रहे हैं,क्यों इन गंभीर विषय पर जिले के अधिकारियों का ध्यान नही? क्यों वैध योग्य व वरिष्ठ पत्रकार इस पर चर्चा नही कर रहे? क्यों इनकी शिक्षा व योग्यता की कोई जांच नही? कौन इन्हे प्रेसकार्ड बेच रहे हैं? क्या इनका चरित्र हैं? क्या इनका पिछला इतिहास हैं? यें ऐसे बहुत से सवाल हैं,जिन पर पत्रकारिता को अब ठोस कदम उठाकर चिंतन करने की आवश्यकता हैं,