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उत्तराखण्ड का यें जिला जहाँ साल में 6 महीने के लिए वीरान हो जाते है ये 14 गांव, जड़ी बूटी बेच कर करते हैं गुजारा, जानें वजह

ByManish Kumar Pal

Dec 13, 2023

News National

वैसे तो देवभूमि उत्तराखण्ड कों धरती पर स्वर्ग माना जाता है क्योंकि यहाँ कि सुंदर पहाड़ियां घाटिया पूरी दुनिया के लोगों कों अपनी ओर आकर्षित करती है मानो आप धरती पर ही किसी स्वर्ग कि सैर कर रहे हो, लेकिन जितने सुंदर यहाँ के नज़ारें है उतना ही कठिन यहाँ का जन जीवन भी है, सुविधाएं कम ओर तेजी से बदलते मौषम के कारण यहाँ के निवासी कठिन जीवनयापन करते है, उत्तराखण्ड के चमोली जिले मे पड़ने वाली नीति घाटी का भी कुछ ऐसा ही इतिहास है,

बता दें कि नीति घाटी के 14 गांवों में रहने वाले लोग अक्टूबर माह में ही घाटी छोड़ जिले की दूसरी जगहों पर चले जाते हैं. इस दौरान वे निचले इलाकों में आकर घाटी से लाई गई जड़ी बूटियां बेचते हैं और ऊन से कई तरीके के खूबसूरत स्वेटर, मफलर आदि बनाते हैं.

चमोली.देवभूमि उत्तराखंड में वैसे तो कई जगहें हैं, जिनका दीदार किए बिना मानो सब कुछ अधूरा है. वैसी ही उत्तराखंड में एक घाटी है नीति, जिसमें करीब 50 गांव हैं. यह घाटी अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर तो है ही लेकिन इसके साथ-साथ यहां के लोगों के सर्दियों और गर्मियों में स्थान परिवर्तन के साथ घाटी बर्फ से ढके रहने के लिए भी जानी जाती है. साथ ही पर्यटकों के लिए भी यह जगह बेहद खास है. चमोली जिले में स्थित नीति घाटी उत्तराखंड के उत्तरी क्षेत्र में 11,811 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यह चीनी सीमा के बेहद करीब है और यहां दक्षिण तिब्बत के सीमा से पहले घाटी का आखिरी गांव है. घाटी में करीब 50 गांव हैं, जिसमें से 14 गांव बर्फबारी शुरू होते ही दूसरे स्थानों माइग्रेट हो जाते हैं, जिससे लगभग 6 से 8 महीने तक यह इलाका वीरान हो जाता है.

नीति घाटी में स्थित नीति, गमशाली, बांपा, फरकिया गांव, गुरगुटी, मेहर गांव, कैलाशपुर, मलारी, कोशा, जेलम, जुम्मा, कागा, गरपक और द्रोणागिरी गांव के ग्रामीण अक्टूबर माह में ही घाटी छोड़ जिले की दूसरी जगहों पर चले जाते हैं. इस दौरान वे निचले इलाकों में आकर घाटी से लाई गई जड़ी बूटियां और ऊन से कई तरीके के खूबसूरत स्वेटर, मफलर बनाते हैं और उन्हें बेचते हैं. सर्दियों में प्रतिकूल मौसम के कारण ग्रामीण घाटी में केवल 6 से 8 महीने तक ही रह पाते हैं, क्योंकि यहां का तापमान माइनस 10 डिग्री तक गिर जाता है, जिससे पानी की एक एक बूंद बर्फ में तब्दील हो जाती है. ऐसे में यहां जन जीवन संभव नहीं हो पाता है. इस दौरान ग्रामीण जिले के ही कालेश्वर, घिंघरांण, देवलीबगढ़, छिनका, नैग्वाड़, सेलवानी, सिरोखोमा, भीमतला, नंदप्रयाग, तेफना आदि गांवों में रहते हैं.

नीति घाटी औषधियों की घाटीनीति घाटी को जड़ी बूटियों का क्षेत्र भी कहा जाता है, जहां विभिन्न औषधीय पौधे और जड़ी बूटियां उगती हैं. इनका उल्लेख आयुर्वेद पर एक प्राचीन ग्रंथ चरक संहिता में किया गया है. साथ ही घाटी में स्थित द्रोणागिरी का पुराणों में भी जिक्र है. कहा जाता है कि इसी घाटी से हनुमान जी लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा करने के लिए पूरा पहाड़ उखाड़ ले गए थे. जड़ी बूटी के अलावा राजमा, चौलाई,फरण, नगदी फसलें और ऊनी कपड़े इनकी आय का साधन हैं.

नीती घाटी के पर्यटक स्थलस्थानीय निवासी लक्ष्मण बुटोला बताते हैं कि पर्यटक नीति गांव के पास कुछ स्थानों जैसे- नीति मंदिर, गमशाली में फेला मंदिर, बाम्पा में पंचनाग मंदिर, प्यार घास भूमि, मलारी, द्रोणागिरी पर्वत, नंदा देवी मंदिर, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान, टिम्मरसैंड महादेव, जोशीमठ और तपोवन की यात्रा कर सकते हैं. साथ ही बताते हैं कि अंतिम गांव नीति को छोड़कर घाटी की यात्रा के लिए किसी अनुमति की आवश्यकता नहीं है. नीति गांव में आने वाले पर्यटकों को एसडीएम जोशीमठ से अनुमति लेनी पड़ती है.

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