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वाराणसी। बांदा जेल में निरुद्ध मुख्तार अंसारी की जीवन लीला 28 मार्च 2024 को खत्म हो गई। उसने अपने जीवन काल में सैकड़ों परिवारों की जिंदगी तबाह की थी। उन्हीं में से एक थे यूपी पुलिस के जाबांज पुलिस अफसर माने जाने वाले डीएसपी शैलेंद्र सिंह।जो प्रेशर पालिटिक्स में इस कदर उलझे कि न्यायिक प्रक्रिया की बर्बरता से उबरने में उन्हें न केवल अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, बल्कि करीब 17 साल तक कानूनी दांव पेंच से जूझते रहे।
DSP शैलेंद्र सिंह को मुख्तार-कृष्णानंद गैंग की निगरानी में लगाया गया
मूलत: चंदौली निवासी डीएसपी शैलेंद्र सिंह को यूपी STF की वाराणसी यूनिट का वर्ष 2004 में प्रभारी बनाया गया था। पूर्वांचल का होने के नाते जमीनी हकीकत के जानकार शैलेंद्र सिंह को तब के कट्टर दुश्मन मुख्तार अंसारी और BJP विधायक कृष्णानंद राय की निगहबानी में लगाया गया था। सत्तासीन मुलायम सरकार के इशारे पर STF वाराणसी ने दोनों के नंबर सर्विलांस पर लगाए।
STF ने चोरी की LMG के साथ सेना के भगोड़े को दबोचा, तब हुआ खुलासा
STF वाराणसी प्रमुख शैलेंद्र सिंह को जनवरी 2004 में एक LMG गन का सौदा करने की कॉल की जानकारी मिली। 35 राइफल्स सेना जम्मू के भगोड़े सैनिक बाबूलाल ने मुख्तार के गनर और अपने चाचा मुन्नर यादव से सेना से चुराई गई गन के लिए 1 करोड़ में सौदा किया। शैलेन्द्र सिंह की टीम ने 25 जनवरी 2004 को वाराणसी के चौबेपुर से बाबू लाल यादव, मुन्नर यादव को गिरफ्तार कर 200 जिंदा कारतूस और LMG बरामद कर ली।
POTA हटाने का DSP पर बना दबाव
STF डीएसपी शैलेन्द्र सिंह ने चौबेपुर थाने में दो FIR दर्ज कराई। पहला आर्म्स एक्ट और दूसरा पोटा के तहत रिपोर्ट लिखी गई। जांच में पता चला कि जिस मोबाइल नंबर पर LMG डील हुई थी, वह नंबर जेल में बंद मुख्तार के गुर्गे तनवीर उर्फ तनु का है। जिसे मुख्तार यूज कर रहा था। पोटा के तहत मुख्तार पर कार्रवाई करके डीएसप शैलेंद्र सिंह ही सवालों के घेरे में आ गए।
जिस सरकार ने निगरानी के लिए भेजा, उसी ने तबाह कर दिया कैरियर
25 जनवरी की शाम मुख्तार ने लखनऊ में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इंटरसेप्ट की गई कॉल में अपनी आवाज और एसटीएफ के आरोपों से इनकार कर दिया। अब शैलेन्द्र सिंह पर FIR बदलने या पोटा केस से मुख्तार का नाम हटाने का प्रेशर बनाया जाने लगा। परेशान होकर फरवरी 2004 में शैलेन्द्र सिंह ने पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया। उस वक्त उन्होंने दावा किया कि LMG बुलेटप्रूफ गाड़ी भेदने के लिए खरीदी गई थी। अगर इसे नहीं रोका जाता तो कृष्णानंद राय एक साल पहले ही मारे जाते।
17 साल बाद योगी सरकार ने DSP शेलेंद्र पर लदे मुकदमे लिए वापस
DSP शैलेंद्र सिंह की प्रताड़ना शुरू हो गई। उनके खिलाफ कई फर्जी एफआईआर हुई। जेल भेजा गया। उनकी टीम के इंस्पेक्टर अजय चतुर्वेदी भी इसके शिकार बने। करीब 17 साल तक शैलेंद्र सिंह कानूनी चकरघिन्नी में पिसते रहे। सरकारे आईं, गईं लेकिन कुछ नहीं हुआ। योगी सरकार ने 6 मार्च 2021 को शैलेंद्र सिंह पर दर्ज सारे चार्ज कोर्ट से वापस ले लिए। नौकरी से इस्तीफा देने के बाद शैलेन्द्र सिंह ने राजनीति में कदम रखा। चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। वर्तमान में वह ग्रामीण लखनऊ में एक जैविक फार्म हाउस चलाते हैं।