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धर्म / बनारस एक ऐसा शहर है जहां की मान्यताएं भी अजीबों गरीब है. कभी यहां जलती चिताओं के बीच होली खेली जाती है तो कभी इन्हीं चिताओं के बीच नगर वधुएं डांस कर पश्चाताप करती हैं. रविवार को एक बार फिर इस परंपरा का निर्वहन किया गया, जहां एक तरफ महाश्मशान पर चिताएं धधक रही थीं तो वहीं नृत्यांगनाएं अपना नृत्य पेश कर रही थीं.
यह मंदिर वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर स्थित है, जिसे मसाननाथ के नाम से जाना जाता है. वासंतिक नवरात्र के सप्तमी तिथि को मंदिर का श्रृंगार होता है और पूरी रात धधकती चिताओं के बीच नृत्यांगनाएं यानी नगर वधुएं डांस करती रहती हैं. दरअसल, यह परंपरा राजा मान सिंह ने शुरू की थी. उन्होंने उस वक्त मसाननाथ मंदिर का जीर्णोधार कराया. जिसके बाद भजन-कीर्तन और नृत्य का कार्यक्रम करवाना चाहा लेकिन किसी भी ख्यातिबद्ध कलाकार ने श्मशान घाट पर प्रस्तुति नहीं दी. जिसके बाद उस वक्त वेश्याएं खुद आकर यहां जलती चिताओं के साथ पूरी रात नृत्य किया और तब से उन्हें नगर वधू का नाम दिया गया और उसी वक्त से यह परंपरा चली आ रही है.
नगर वधुओं का मानना है कि वे अपने नृत्य के जरिए महाशमशान नाथ यह मन्नत मांगते हैं कि अगले जन्म हमें इस जिंदगी से छुटकारा मिले और पुण्य की प्राप्ति हो. यही कारण है कि आज सदियों से इस परंपरा का निर्वाहन चलता चला आ रहा है.
राजा मानसिंह ने शुरू कराई थी परंपरा
मान्यता है कि अकबर के नवरत्नों में से एक राजा मानसिंह ने प्राचीन नगरी काशी में भगवान शिव के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इस मौके पर राजा मानसिंह एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कराना चाह रहे थे, लेकिन कोई भी कलाकार इस श्मशान में आने और अपनी कला के प्रदर्शन के लिए तैयार नहीं हुआ।
इसकी जानकारी काशी की नगरवधुओं को हुई तो वे स्वयं ही श्मशान घाट पर होने वाले इस उत्सव में नृत्य करने को तैयार हो गईं। इस दिन से धीरे-धीरे यह उत्सवधर्मी काशी की ही एक परंपरा का हिस्सा बन गई। तब से आज तक चैत्र नवरात्रि की सातवीं निशा में हर साल यहां श्मशानघाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।