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NNJ विशेष / आज के समय में मोबाइल एक ऐसी जरूरत बन चूका है जिसके बगैर आप एक कदम भी नहीं चल सकते दिन भर मे आप अपने एक मोबाइल पर कितने आश्रित है इसका आंकलन अगर आपको करना है तो सिर्फ 12 घंटे के लिए आप अपने मोबाइल को स्विच ऑफ़ करके घर के किसी कोने मे रख दीजिये, आप सांस तो लेंगे लेकिन बहुत से कामो से हाथ धो बैठेंगे,
वर्तमान युग मे फोन घर-घर में मौजूद है घर मे जितने सदस्य उतने मोबाइल, ना चाहते हुए भी आज यह बच्चों के हाथों में भी आसानी से पहुँच चुका है। कई माता-पिता रोते हुए बच्चों को चुप कराने, उनका ध्यान बँटाने या उन्हें व्यस्त रखने के लिए उनके हाथों मे मोबाइल थमा देते हैं ओर उनमे वीडियो गेम या कार्टून चला देते है । लेकिन कुछ मिनटों की शांति के बदले यह आदत आपके बच्चों के जीवन में ऐसे खतरे पैदा कर रही है, जो लंबे समय तक असर छोड़ उन्हें अपने मे समेट रही हैं।ओर उनके मस्तिष्क को अपंग बना रही है,
बच्चों का मस्तिष्क शुरुआती उम्र में तेज़ी से विकसित होता है। इस समय उन्हें ज़रूरत होती है खेल-कूद, किताबों, बातचीत और रचनात्मक गतिविधियों की। लेकिन मोबाइल के रंग-बिरंगे वीडियो, तेज़ आवाज़ और लगातार बदलते दृश्य ही उन्हें कृत्रिम ख़ुशी दे रहे हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार 2–12 वर्ष के बच्चों का मस्तिष्क असली अनुभवों ओर प्रेक्टिकल से सबसे ज़्यादा सीखता है, लेकिन मोबाइल यह प्रक्रिया बहुत धीमी कर रहा है। लंबे समय तक स्क्रीन पर टिके रहने से बच्चा वास्तविक दुनिया में रुचि खोने लगता है और वर्चुअल दुनिया में सुकून ढूँढने लगता है।ना उसे भूख प्यास से कोई मतलब रहता है ना घर के किसी सदस्य से यहाँ तक की माता पिता से जरुरी वो मोबाइल को समझने लगता है, या यूँ कहें की मोबाइल ओर मोबाइल मे चलने वाले वीडियो गेम ही उसकी दुनिया बनते चले जाते है, ओर जो माँ बाप इसे देख खुश हो रहे है कल ये उनके जीवन का सबसे बड़ा दुख ओर मुशीबत ओर अभिशाप साबित होने की तैयारी मे है,
शारीरिक और मानसिक नुकसान…….
मोबाइल का ज़्यादा उपयोग बच्चों में सिर्फ मानसिक ही नहीं, बल्कि शारीरिक समस्याएँ भी पैदा कर रहा है—
आँखों की रोशनी कमजोर होना और सूखापन,गलत बैठने की आदत के कारण गर्दन और पीठ में झुकाव व दर्द,मोटापा या फिर बहुत दुबला पतला और शारीरिक सक्रियता में कमी,नींद की गुणवत्ता में गिरावट, जिससे याददाश्त और पढ़ाई पर बुरा असर,
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की रिपोर्ट के अनुसार, जिन बच्चों का स्क्रीन टाइम ज़्यादा होता है, उनमें व्यवहारिक समस्याएँ और चिड़चिड़ापन बढ़ जाता है।साथ ही सामाजिक दूरी और व्यवहार में तेजी से बदलाव होने लगते है मोबाइल पर अधिक समय बिताने से बच्चे परिवार और दोस्तों के साथ कम समय बिताते हैं।ना उन्हें परिवार के किसी सदस्य से मतलब होता है ना ही साथ के बच्चों से, वो सिर्फ मोबाइल मे ख़ुशी ढूंढ़ रहे है,
मोबाइल मे व्यस्त रहने के कारण उनका संवाद कौशल इतना कमजोर हो जाता है की वो ना किसी से कोई सवाल करते है ओर ना किसी जवाब का उत्तर देते है, चुपचाप ओर गुमशुम रहते है,
या तो ऐसे बच्चे बिलकुल शांत होते है या फिर इतने हिंसक हो जाते है की एक मोबाइल को अपने हाथों मे पाने के लिए वे अपने माता पिता व अन्य परिवारिक सदस्यों पर जानलेवा हमला भी कर देते है ओर यें स्तिथि उस लेवल तक पहुँच जाती है की आपको मजबूरन उसे किसी डॉक्टर के पास लेकर जाना पड़ता है
विशेष चेतावनी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने साफ कहा है कि दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को बिल्कुल भी स्क्रीन न दें। 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए रोज़ाना एक घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम नहीं होना चाहिए,ओर वह भी माता-पिता की देखरेख में ही हो । भारत में इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (IAP) भी इसी तरह की सख्त गाइडलाइन देती है।
समाधान, जिम्मेदारी ओर बचाव….
जैसे डाइनिंग टेबल और बेडरूम को फ्री स्क्रीन जोन बनाये,बच्चों को आउटडोर खेल, किताबें, पेंटिंग, संगीत जैसी गतिविधियों में शामिल करें,मोबाइल पर जो भी देखें, वह साथ बैठकर और नियंत्रित तरीके से हो,सप्ताह में एक दिन “नो स्क्रीन डे” रखें, जिसमें पूरा परिवार ऑफ़लाइन गतिविधियाँ करे,
समँझना होगा कि मोबाइल कोई खिलौना नहीं, बल्कि एक ऐसा उपकरण है जो बच्चों के भविष्य को प्रभावित कर रहा है। यह माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को तकनीक के सही उपयोग की आदत डालें और बचपन की मासूमियत को स्क्रीन की लत से बचाएँ। याद रखें—आपका दिया हुआ मोबाइल सिर्फ कुछ मिनटों की चुप्पी देता है, लेकिन उसका असर बच्चों की पूरी जिंदगी पर पड़ रहा है।जहाँ एक ओर उनका दिमाग़ कमजोर पड़ रहा है तो वही वे समाज से दुरी बना रहे है,
मोबाइल से बच्चों को छुड़ाने ओर उनमे सुधार लाने के लिए जरूर अपनाकर देखे यें 21-दिन का एक प्रोग्राम,
मोबाइल का समय तय करें (जैसे सुबह 30 मिनट, शाम 30 मिनट)ज़ब समय पूरा हो जाए तो बच्चे को पास की मोबाइल स्क्रीन से थोड़ा दूर टीवी स्क्रीन पर शिफ्ट करें, जैसे कॉमेडी शो, एनीमल या डिस्कवरी शो या फिर मैजिक शो, लगभग 30 मिनट के लिए,…खाने की टेबल और बेडरूम में मोबाइल नो एंट्री करें।क्योंकि बच्चे का ध्यान पूरी तरह खाने पर होना चाहिए,
खाने के बाद उसे घर से बाहर लेकर जाए,हर दिन 30–45 मिनट बाहर खेलने के लिए कहें।ऐसे मे उसका ध्यान रियल एक्टिविटी की ओर बढेगा, दूसरा वो बाहरी दुनिया के प्रति आकर्षित होगा,कोशिश करें रात 10 से 11 के बिच बच्चा सही नींद ले ओर ऐसा तभी हो सकता है ज़ब बच्चा बाहरी खेलों का हिस्सा बनकर शारीरिक थकान महसूस करेगा,
माता-पिता भी बच्चे के सामने मोबाइल का इस्तेमाल कम करें।बच्चे के साथ खुद कुछ देर टीवी स्क्रीन पर शो देखे ओर बिच बिच मे उस शो के बारे मे बच्चे के साथ हँसना बाते करना जारी रखें,ओर समय पर टीवी बंद कर उसे अपने साथ नींद दें,
दिन में कम से कम 1 घंटे बाहरी खेल (क्रिकेट, बैडमिंटन, साइकिलिंग)।हो सके तो आप भी कुछ देर के लिए बच्चे के साथ उसकी इन एक्टिविटी मे शामिल हो,ड्रॉइंग, पेंटिंग, पज़ल, लेगो, कहानी सुनना जैसी गतिविधियां शामिल करें।उसे पेंटिंग बनाने को दें, उसकी बनाई पेंटिंग चाहे जो भी हो उसकी तारीफ़ करें, उसकी पेंटिंग लकीरों के बारे मे पूछे बात करें,अगर बच्चा नियम माने, तो तारीफ़ या छोटा इनाम दें