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समाज और न्याय व्यवस्था में गवाह का महत्व हमेशा से सर्वोपरि माना गया है। अदालतें गवाहों की गवाही के आधार पर फैसले सुनाती रही हैं। लेकिन गवाह इंसान है, और इंसान कमज़ोर है। वह लालच, डर, रिश्वत या दबाव में आकर सच को छुपा सकता है।यहाँ तक की बिक भी सकता है,
परंतु आज के दौर में एक ऐसी कठपुतली जो गवाह के रूप मे हमारे बीच है, जो न तो बिकती है, न झूठ बोलती है, और न ही किसी दबाव के आगे झुकती है। यह गवाह है – मोबाइल फ़ोन।
मोबाइल हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। हम इसे जेब में रखते हैं,चौबीस घंटे साथ रखते हैं। यही कारण है कि यह हमारी हर गतिविधि का गवाह बन जाता है। हम किससे बात करते हैं, किस जगह जाते हैं, किसे क्या संदेश भेजते हैं, कौन-सी तस्वीर खींचते हैं – मोबाइल सब कुछ अपने भीतर संजोकर रखता है।
अदालतों में पेश किए गए अनगिनत मामलों में यह साबित हुआ है कि इंसानों की गवाही से ज़्यादा दमदार सबूत मोबाइल डेटा होता है।आज हत्या से लेकर धोखाधड़ी तक, ज़्यादातर मामलों में मोबाइल ही अपराध का राज़ खोल रहा है। कॉल डिटेल्स बता देती हैं कि अपराधी घटना के समय कहाँ था और किससे बात कर रहा था। लोकेशन हिस्ट्री यह दिखा देती है कि अपराध के समय वह घटनास्थल पर मौजूद था या नहीं। व्हाट्सएप चैट्स और सोशल मीडिया पोस्ट साजिश की परतें खोलकर रख देती हैं। यही वजह है कि अपराधी से पहले उसका मोबाइल पुलिस के हाथ आता है।
समाज और बदलाव
मोबाइल सिर्फ अपराध का गवाह नहीं है, यह समाज के बदलाव का भी आईना है। किसी अन्याय की घटना को आज दबाना लगभग असंभव है। कोई भी साधारण व्यक्ति अपने मोबाइल से वीडियो बनाकर पूरी दुनिया को सच्चाई दिखा सकता है। यही कारण है कि भ्रष्टाचार, हिंसा और अत्याचार के अनेक मामले नेताओं की शिफ़ारिस ओर दबाव से पहले ही उजागर हो जाते हैं। सच कहें तो मोबाइल ने आम आदमी को निडर ओर हौसलेबाज बना दिया है।
दोधारी तलवार
लेकिन इस गवाह की सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि इसका दुरुपयोग भी उतनी ही आसानी से हो सकता है। फर्जी वीडियो, झूठी खबरें और भ्रामक तस्वीरें मोबाइल से ही बनाई और फैलाई जाती हैं। इसलिए किसी भी डिजिटल गवाही को अदालत में प्रस्तुत करने से पहले तकनीकी जांच की आवश्यकता होती है।
फिर भी, यह निर्विवाद सत्य है कि मोबाइल आज के समय का सबसे बड़ा और सबसे सच्चा गवाह बन चुका है। यह न रिश्वत खाता है, न झूठ बोलता है और न ही किसी दबाव में आकर सच को तोड़-मरोड़ करता है। आने वाले समय में न्यायपालिका और समाज – दोनों में मोबाइल की भूमिका और भी अहम होती नजर आ रही है,
इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि –भ्रष्टाचार पर लगाम कसने में जहाँ सरकारी सख्ती और जांच एजेंसियों की भूमिका अहम रही है, वहीं अब आम जनता के हाथ में मौजूद मोबाइल फोन भी बड़ा हथियार बन चूका है। रिश्वत लेने वालों और गलत काम करने वालों के मन में मोबाइल रिकॉर्डिंग का ख़ौफ़ रहता है,
सूत्रों के अनुसार, अब कई विभागों में अधिकारी और कर्मचारी सीधे लेन-देन करने से बचते हैं। उन्हें डर रहता है क्योंकि ऐसे कई मामले है जहाँ आम लोगों ने ही मोबाइल रिकॉर्डिंग से भ्रस्टाचार की पोल खोल डाली,
छोटी-सी क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल होते ही मामला सुर्खियों में आ जाता है और आरोपी पर कार्रवाई का दबाव बढ़ जाता है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि पहले भ्रष्टाचार साबित करना बेहद मुश्किल था, क्योंकि सबूत जुटाना आसान नहीं था। लेकिन अब मोबाइल कैमरे ने इस कमी को पूरा कर दिया है। फेसबुक, व्हाट्सएप और यूट्यूब पर वायरल हुए कई वीडियो इसकी मिसाल हैं, जहाँ आम लगो द्वारा ही ‘स्टिंग ऑपरेशन’ कर मिडिया तक को हिला डाला,
भ्रष्टाचार निरोधक विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि मोबाइल रिकॉर्डिंग सबसे ठोस सबूतों में से एक मानी जाती है। ऐसे मामलों में आरोपी आसानी से बच नहीं पाते। यही वजह है कि अब कई अफसर और कर्मचारी जनता से बातचीत करते समय सतर्क हो जाते हैं।
नतीजा यह है कि मोबाइल फोन अब केवल संवाद का साधन नहीं रहा, बल्कि भ्रष्टाचारियों के लिए डर और जनता के लिए ताकत बन चुका है।ओर हर नागरिक को इसका सही इस्तेमाल करना ही चाहिये,